प्रार्थना Poetry (page 14)

हर आने वाले पल से डर रहा हूँ

रज़्ज़ाक़ अरशद

शहर अपना है मगर लोग कहाँ हैं अपने

रज़्ज़ाक़ अफ़सर

वो तमाम रंग अना के थे वो उमंग सारी लहू से थी

राज़ी अख्तर शौक़

शायद अब रूदाद-ए-हुनर में ऐसे बाब लिखे जाएँगे

राज़ी अख्तर शौक़

ऐ सुब्ह-ए-उमीद देर क्या है

राज़ी अख्तर शौक़

अब सफ़र हो तो कोई ख़्वाब-नुमा ले जाए

राज़ी अख्तर शौक़

हुस्न पाबंद-ए-हिना हो जैसे

रज़ा हमदानी

हूँ शामिल सब में और सब से जुदा हूँ

रज़ा अमरोही

नुस्ख़े में तबीबों ने लिखा और ही कुछ है

रौनक़ टोंकवी

जब कभी यादों का दरवाज़ा खुला आख़िर-ए-शब

रौनक़ दकनी

कोई ज़ख़्म खुला तो सहने लगे कोई टीस उठी लहराने लगे

रउफ़ रज़ा

कुछ हद भी ऐ फ़लक सितम-ए-ना-रवा की है

रसूल जहाँ बेगम मख़फ़ी बदायूनी

ख़िज़ाँ की बात न ज़िक्र-ए-बहार करते हैं

रशक खलीली

अजीब ख़्वाहिश

राशिद जमाल फ़ारूक़ी

मुजरिम है तुम्हारा तो सज़ा क्यूँ नहीं देते

राशिद फ़ज़ली

ये न सोचा था कड़ी धूप से रिश्ता भी तो है

राशिद अनवर राशिद

बस एक बार तिरा अक्स झिलमिलाया था

राशिद अनवर राशिद

ज़ाद-ए-सफ़र

राशिद आज़र

मालूम है वो मुझ से ख़फ़ा है भी नहीं भी

राशिद आज़र

फ़ासला रक्खो ज़रा अपनी मुदारातों के बीच

राशिद आज़र

हैं सर-निगूँ जो ताना-ए-ख़ल्क़-ए-ख़ुदा से हम

रशीद रामपुरी

मेरे लिए तो हर्फ़-ए-दुआ हो गया वो शख़्स

रशीद क़ैसरानी

नहीं था ज़ख़्म तो आँसू कोई सजा लेता

रशीद निसार

हाए शर्म-ए-दिलबरी उस दिलरुबा के हाथ है

रशीद लखनवी

गर्म रफ़्तार है तेरी ये पता देते हैं

रशीद लखनवी

आने को नज़र में मिरी सौ फ़ित्ना-गर आए

रसा रामपुरी

मोहब्बत ख़ब्त है या वसवसा है

रसा चुग़ताई

ख़्वाब उस के हैं जो चुरा ले जाए

रसा चुग़ताई

ख़्वाब उस के हैं जो चुरा ले जाए

रसा चुग़ताई

मैं और हम-आग़ोश हूँ उस रश्क-ए-परी से

रंजूर अज़ीमाबादी

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