प्रार्थना Poetry (page 32)

जिस्म के बयाबाँ में दर्द की दुआ माँगें

अहमद शनास

नए ज़मानों की चाप तो सर पे आ खड़ी थी

अहमद शहरयार

सारा आलम धुआँ धुआँ क्यूँ है

अहमद शाहिद ख़ाँ

फ़ड़फ़ड़ाता हुआ परिंदा है

अहमद सज्जाद बाबर

और सी धूप घटा और सी रक्खी हुई है

अहमद सग़ीर सिद्दीक़ी

आख़िर दुआ करें भी तो किस मुद्दआ के साथ

अहमद नदीम क़ासमी

नया साल

अहमद नदीम क़ासमी

खड़ा था कब से ज़मीं पीठ पर उठाए हुए

अहमद नदीम क़ासमी

जी चाहता है फ़लक पे जाऊँ

अहमद नदीम क़ासमी

जाने कहाँ थे और चले थे कहाँ से हम

अहमद नदीम क़ासमी

इक मोहब्बत के एवज़ अर्ज़-ओ-समा दे दूँगा

अहमद नदीम क़ासमी

दिलों से आरज़ू-ए-उम्र-ए-जावेदाँ न गई

अहमद नदीम क़ासमी

अजब सुरूर मिला है मुझे दुआ कर के

अहमद नदीम क़ासमी

नाला-ए-ख़ूनीं से रौशन दर्द की रातें करो

अहमद मुश्ताक़

उठिए कि फिर ये मौक़ा हाथों से जा रहेगा

अहमद महफ़ूज़

उठ जा कि अब ये मौक़ा हाथों से जा रहेगा

अहमद महफ़ूज़

चंद पेड़ों को ही मजनूँ की दुआ होती है

अहमद कामरान

तू ज़ियादा में से बाहर नहीं आया करता

अहमद कामरान

दुनिया मिरे पड़ोस में आबाद है मगर

अहमद जावेद

अच्छी गुज़र रही है दिल-ए-ख़ुद-कफ़ील से

अहमद जावेद

शब-ए-माह में जो पलंग पर मिरे साथ सोए तो क्या हुए

अहमद हुसैन माइल

प्यार अपने पे जो आता है तो क्या करते हैं

अहमद हुसैन माइल

महशर में चलते चलते करूँगा अदा नमाज़

अहमद हुसैन माइल

चोरी से दो घड़ी जो नज़ारे हुए तो क्या

अहमद हुसैन माइल

मैं क्या करूँ मिरे क़ातिल न चाहने पर भी

अहमद फ़राज़

ये शहर सेहर-ज़दा है सदा किसी की नहीं

अहमद फ़राज़

न दिल से आह न लब से सदा निकलती है

अहमद फ़राज़

ख़ामोश हो क्यूँ दाद-ए-जफ़ा क्यूँ नहीं देते

अहमद फ़राज़

चारागरों ने बाँध दिया मुझ को बख़्त से

अहमद फ़क़ीह

हमराज़-ए-रक़ीब हो गए हो

अहमद अज़ीमाबादी

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