दोस्त Poetry (page 14)

हुक्म-ए-मुर्शिद पे ही जी उठना है मर जाना है

राकिब मुख़्तार

ऐ दोस्त मैं ख़ामोश किसी डर से नहीं था

राजेन्द्र मनचंदा बानी

हर जाद-ए-शहर

राजेन्द्र मनचंदा बानी

तीरगी बला की है मैं कोई सदा लगाऊँ

राजेन्द्र मनचंदा बानी

दमक रहा था बहुत यूँ तो पैरहन उस का

राजेन्द्र मनचंदा बानी

अजीब तजरबा था भीड़ से गुज़रने का

राजेन्द्र मनचंदा बानी

सफ़र में अब के अजब तजरबा निकल आया

राजेश रेड्डी

क्या क्या सवाल मेरी नज़र पूछती रही

राजेन्द्र नाथ रहबर

मियाँ के दोस्त

राजा मेहदी अली ख़ाँ

हिसार-ए-ज़ात से निकलूँ तो तुझ से बात करूँ

राज कुमार क़ैस

शामिल तू मिरे जिस्म मैं साँसों की तरह है

रईस सिद्दीक़ी

नतशे ने कहा

रईस फ़रोग़

जू-ए-ताज़ा किसी कोहसार-कुहन से आए

रईस फ़रोग़

ये कर्बला है नज़्र-ए-बला हम हुए कि तुम

रईस अमरोहवी

शिकवा करने से कोई शख़्स ख़फ़ा होता है

रईस अमरोहवी

'रईस' हम जो सू-ए-कूचा-ए-हबीब चले

रईस अमरोहवी

'रईस' अश्कों से दामन को भिगो लेते तो अच्छा था

रईस अमरोहवी

'रईस' अश्कों से दामन को भिगो लेते तो अच्छा था

रईस अमरोहवी

राज़-ए-गिरफ़्तगी न असीर-ए-लहन से पूछ

रईस अमरोहवी

कू-ए-जानाँ मुझ से हरगिज़ इतनी बेगाना न हो

रईस अमरोहवी

हम ने ऐ दोस्त रिफ़ाक़त से भला क्या पाया

रईस अमरोहवी

हिज्र से वस्ल इस क़दर भारी

रईस अमरोहवी

ख़ूब नासेह की नसीहत का नतीजा निकला

रहमत क़रनी

वो कैसे लोग होते हैं जिन्हें हम दोस्त कहते हैं

इरफ़ान अहमद मीर

असीरों में भी हो जाएँ जो कुछ आशुफ़्ता-सर पैदा

इक़बाल सुहैल

वो दोस्त था तो उसी को अदू भी होना था

इक़बाल साजिद

संग-दिल हूँ इस क़दर आँखें भिगो सकता नहीं

इक़बाल साजिद

रुख़-ए-रौशन का रौशन एक पहलू भी नहीं निकला

इक़बाल साजिद

हर मोड़ नई इक उलझन है क़दमों का सँभलना मुश्किल है

इक़बाल सफ़ी पूरी

गर्दिशों में भी हम रास्ता पा गए

इक़बाल सफ़ी पूरी

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