दोस्त Poetry (page 13)

अश्क यूँ बहते हैं सावन की झड़ी हो जैसे

रज़ा हमदानी

इश्क़ के जाँ-निसार जीते हैं

रज़ा अज़ीमाबादी

उम्र-ए-अबद से ख़िज़्र को बे-ज़ार देख कर

रविश सिद्दीक़ी

क्या सितम कर गई ऐ दोस्त तिरी चश्म-ए-करम

रविश सिद्दीक़ी

कहने को सब फ़साना-ए-ग़ैब-ओ-शुहूद था

रविश सिद्दीक़ी

इश्क़ दुश्वार नहीं ख़ुश-नज़री मुश्किल है

रविश सिद्दीक़ी

हवस-ए-ख़लवत-ए-ख़ुर्शीद-ओ-निशाँ और सही

रविश सिद्दीक़ी

साया

राशिद आज़र

अगरचे मैं ने लिखीं उस को अर्ज़ियाँ भी बहुत

रशीद उस्मानी

तर्क-ए-सितम पे वो जो क़सम खा के रह गए

रशीद रामपुरी

कहते हो मुझे बे-अदब ख़ैर मैं बे-अदब सही

रशीद रामपुरी

है निहायत सख़्त शान-ए-इम्तिहान-ए-कू-ए-दोस्त

रशीद रामपुरी

ऐ दिल इस का तुझे अंदाज़-ए-सुख़न याद नहीं

रशीद रामपुरी

अहल-ए-नज़र की आँख में हुस्न की आबरू नहीं

रशीद रामपुरी

हिज्र है अब था यहीं में ज़ार हम पहलू-ए-दोस्त

रशीद लखनवी

यक़ीनन है कोई माह-ए-मुनव्वर पीछे चिलमन के

रंजूर अज़ीमाबादी

तुझ से कहना था हाल-ए-दिल लेकिन

राना आमिर लियाक़त

होता है मेहरबान कहाँ पर ख़ुदा-ए-इश्क़

राना आमिर लियाक़त

बर्फ़ पिघली तो रास्ता निकला

राना आमिर लियाक़त

बना हुआ है हमारा कसी बहाने से

राना आमिर लियाक़त

अब ऐसे दश्त-मिज़ाजों से दूर घर लिया जाए

राना आमिर लियाक़त

निगाह तूर पे है और जमाल सीने में

रम्ज़ अज़ीमाबादी

मैं अँधेरों का पुजारी हूँ मिरे पास न आ

राम रियाज़

रक़्स-ए-शबाब-ओ-रंग-ए-बहाराँ नज़र में है

राम कृष्ण मुज़्तर

फिर कोई ख़लिश नज़्द-ए-राग-ए-जाँ तो नहीं है

राम कृष्ण मुज़्तर

मुस्तक़िल दीद की ये शक्ल नज़र आई है

राम कृष्ण मुज़्तर

मिरी निगाह में ये रंग-ए-सोज़-ओ-साज़ न हो

राम कृष्ण मुज़्तर

मेरे तसव्वुरात में अब कोई दूसरा नहीं

राम कृष्ण मुज़्तर

दिल-ओ-नज़र में न पैदा हुई शकेबाई

राम कृष्ण मुज़्तर

सफ़र के नक़्शे में चटियल ज़मीं बनाई गई

राकिब मुख़्तार

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