होता है मेहरबान कहाँ पर ख़ुदा-ए-इश्क़

होता है मेहरबान कहाँ पर ख़ुदा-ए-इश्क़

लगती है फिर भी शहर में खुल के सदा-ए-इश्क़

नुक्ता यही अज़ल से पढ़ाया गया हमें

हव्वा बराए-हुस्न है आदम बराए-इश्क़

दुनिया हमारे हाथ में है गेंद की तरह

हम कर रहे हैं ज़िंदगी जब से बराए इश्क़

बैठे हैं मिस्ल-ए-यार हुए ख़ुद के रू-ब-रू

मिलती नहीं हर एक को ऐसी अता-ए-इश्क़

देता हूँ सारे शहर में बस एक ही सदा

दरवेश देगा ख़ैर में सब को दुआ-ए-इश्क़

मूसा को सम्त-ए-तूर जो इक मौज ले गई

वो इंतिहा-ए-शौक़ थी या इब्तिदा-ए-इश्क़

दुनिया की जुस्तुजू तो हुई ख़त्म कब की दोस्त

मुर्शिद हमारा इश्क़ है हम हैं गदा-ए-इश्क़

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In Hindi By Famous Poet Rana Amir Liyaqat. is written by Rana Amir Liyaqat. Complete Poem in Hindi by Rana Amir Liyaqat. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.