कई तरह के तहाइफ़ पसंद हैं उस को
मगर जो काम यहाँ फूल से निकलता है
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Gulzar
Rahat Indori
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Anwar Masood
Jaun Eliya
Javed Akhtar
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दिलों में ख़ौफ़ के चूल्हे की आग ठंडी हो
इस दौर-ए-ना-मुराद से ये तजरबा हुआ
मैं उस की नज़रों का कुछ इस लिए भी हूँ क़ाइल
अगरचे रोज़ मिरा सब्र आज़माता है
जैसा चाहा वैसा मंज़र देखा है
आओ आँखें मिला के देखते हैं
ईंट से ईंट जोड़ कर, ख़्वाब बना रहा हूँ मैं
उसे पता है कहाँ हाथ थामना है मिरा
अगर ये चेहरा यूँही गर्द से अटा रहेगा
मोहब्बतों के लिए उम्र कम है सो वो शख़्स
ऐसी प्यारी शाम में जी बहलाने को