मोहब्बतों के लिए उम्र कम है सो वो शख़्स
सभी शिकायतें कुछ दिन इधर उधर कर दे
Mohsin Naqvi
Gulzar
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Jaun Eliya
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क़ीमती शय थी तिरा हिज्र उठाए रक्खा
जैसा चाहा वैसा मंज़र देखा है
एक तू, एक आशिक़ी मेरी
हज़ार रस्ते तिरे हिज्र के इलाज के हैं
तुझ आँख से झलकता था एहसास-ए-ज़िंदगी
होता है मेहरबान कहाँ पर ख़ुदा-ए-इश्क़
मानूस रौशनी हुई मेरे मकान से
उसे पता है कहाँ हाथ थामना है मिरा
ऐसी प्यारी शाम में जी बहलाने को
ख़ुदा का शुक्र कि आहट से ख़्वाब टूट गया