नुक्ता यही अज़ल से पढ़ाया गया हमें
हव्वा बराए-हुस्न है आदम बराए-इश्क़
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Anwar Masood
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Wasi Shah
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Gulzar
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ईंट से ईंट जोड़ कर, ख़्वाब बना रहा हूँ मैं
दिलों में ख़ौफ़ के चूल्हे की आग ठंडी हो
ज़िंदगी देख तिरी ख़ास रिआयत होगी
ख़ुदा का शुक्र कि आहट से ख़्वाब टूट गया
मानूस रौशनी हुई मेरे मकान से
मोहब्बतों के लिए उम्र कम है सो वो शख़्स
दिल क़नाअत ज़रा सी करता तो
बना हुआ है हमारा कसी बहाने से
गले लगा के मुझे पूछ मसअला क्या है
बर्फ़ पिघली तो रास्ता निकला
उसे पता है कहाँ हाथ थामना है मिरा
अब ऐसे दश्त-मिज़ाजों से दूर घर लिया जाए