दिल क़नाअत ज़रा सी करता तो
हर मोहब्बत थी आख़िरी मेरी
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एक तू, एक आशिक़ी मेरी
मानूस रौशनी हुई मेरे मकान से
अगर ये चेहरा यूँही गर्द से अटा रहेगा
आधे घर में मैं होता हूँ आधे घर में तन्हाई
वस्ल नुक़सान कर गया मेरा
कार-ए-जुनूँ की हालतें, कार-ए-ख़ुदा ख़याल कर
ज़िंदगी देख तिरी ख़ास रिआयत होगी
इक तस्वीर पिया की उभरी मंज़र से
ये जो चार दिन की थी ज़िंदगी इसे तेरे नाम न कर सका
हर साँस नई साँस है हर दिन है मिरा दिन
उसे पता है कहाँ हाथ थामना है मिरा
हज़ार रस्ते तिरे हिज्र के इलाज के हैं