वस्ल नुक़सान कर गया मेरा
मर गई आज शाएरी मेरी
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मैं जानता हूँ मोहब्बत में क्या नहीं करना
तुझ से कहना था हाल-ए-दिल लेकिन
ऐसी प्यारी शाम में जी बहलाने को
मैं हाव-हू पे कहानी को ख़त्म कर दूँगा
एक दो ख़्वाब अगर देख लिए जाएँगे
आओ आँखें मिला के देखते हैं
इक तस्वीर पिया की उभरी मंज़र से
अपना आप पड़ा रह जाता है बस इक अंदाज़े पर
अब ऐसे दश्त-मिज़ाजों से दूर घर लिया जाए
मोहब्बतों के लिए उम्र कम है सो वो शख़्स
क़ीमती शय थी तिरा हिज्र उठाए रक्खा
दिल क़नाअत ज़रा सी करता तो