ऐसी प्यारी शाम में जी बहलाने को
पाँव निकाले जा सकते हैं चादर से
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तुझ से कहना था हाल-ए-दिल लेकिन
मैं जानता हूँ मोहब्बत में क्या नहीं करना
ये जो चार दिन की थी ज़िंदगी इसे तेरे नाम न कर सका
एक दो ख़्वाब अगर देख लिए जाएँगे
अपना आप पड़ा रह जाता है बस इक अंदाज़े पर
गले लगा के मुझे पूछ मसअला क्या है
तुझ आँख से झलकता था एहसास-ए-ज़िंदगी
दिलों में ख़ौफ़ के चूल्हे की आग ठंडी हो
मैं हाव-हू पे कहानी को ख़त्म कर दूँगा
बना हुआ है हमारा कसी बहाने से
तुझ को बताएँ किस तरह, बैठे हैं कैसे हाल में
आधे घर में मैं होता हूँ आधे घर में तन्हाई