तुझ आँख से झलकता था एहसास-ए-ज़िंदगी
मैं देखता रहा हूँ तुझे ख़ाक-दान से
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Rahat Indori
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Wasi Shah
Habib Jalib
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(403) Peoples Rate This
ये जो चार दिन की थी ज़िंदगी इसे तेरे नाम न कर सका
बना हुआ है हमारा कसी बहाने से
एक तू, एक आशिक़ी मेरी
गले लगा के मुझे पूछ मसअला क्या है
अपना आप पड़ा रह जाता है बस इक अंदाज़े पर
कार-ए-जुनूँ की हालतें, कार-ए-ख़ुदा ख़याल कर
इस दौर-ए-ना-मुराद से ये तजरबा हुआ
होता है मेहरबान कहाँ पर ख़ुदा-ए-इश्क़
मोहब्बतों के लिए उम्र कम है सो वो शख़्स
हर साँस नई साँस है हर दिन है मिरा दिन
आधे घर में मैं होता हूँ आधे घर में तन्हाई
ख़ुदा का शुक्र कि आहट से ख़्वाब टूट गया