इस दौर-ए-ना-मुराद से ये तजरबा हुआ
दीवार गुफ़्तुगू के लिए बेहतरीन है
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आओ आँखें मिला के देखते हैं
जीत और हार का इम्कान कहाँ देखते हैं
ईंट से ईंट जोड़ कर, ख़्वाब बना रहा हूँ मैं
अब ऐसे दश्त-मिज़ाजों से दूर घर लिया जाए
तू कोई ख़्वाब नहीं जिस से किनारा कर लें
एक तू, एक आशिक़ी मेरी
दिल क़नाअत ज़रा सी करता तो
कार-ए-जुनूँ की हालतें, कार-ए-ख़ुदा ख़याल कर
तुझ से कहना था हाल-ए-दिल लेकिन
मैं उस की नज़रों का कुछ इस लिए भी हूँ क़ाइल
मोहब्बतों के लिए उम्र कम है सो वो शख़्स