ईंट से ईंट जोड़ कर, ख़्वाब बना रहा हूँ मैं
रख़्ने न डाल मेरे यार' ख़्वाब की देख-भाल में
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ज़िंदगी देख तिरी ख़ास रिआयत होगी
वस्ल नुक़सान कर गया मेरा
अब ऐसे दश्त-मिज़ाजों से दूर घर लिया जाए
अगर ये चेहरा यूँही गर्द से अटा रहेगा
तू कोई ख़्वाब नहीं जिस से किनारा कर लें
उसे पता है कहाँ हाथ थामना है मिरा
ऐसी प्यारी शाम में जी बहलाने को
नुक्ता यही अज़ल से पढ़ाया गया हमें
गए दिनों में ये इनआम होने वाला था
दिल इक ऐसा कासा है जिस की गहराई मत पूछो
जैसा चाहा वैसा मंज़र देखा है
मानूस रौशनी हुई मेरे मकान से