ज़िंदगी देख तिरी ख़ास रिआयत होगी
इक मोहब्बत है मिरे पास अगर करने दे
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अगर ये चेहरा यूँही गर्द से अटा रहेगा
अगरचे रोज़ मिरा सब्र आज़माता है
मानूस रौशनी हुई मेरे मकान से
तुझ को बताएँ किस तरह, बैठे हैं कैसे हाल में
मोहब्बतों के लिए उम्र कम है सो वो शख़्स
कार-ए-जुनूँ की हालतें, कार-ए-ख़ुदा ख़याल कर
इक तस्वीर पिया की उभरी मंज़र से
इस दौर-ए-ना-मुराद से ये तजरबा हुआ
अब ऐसे दश्त-मिज़ाजों से दूर घर लिया जाए
तुझ आँख से झलकता था एहसास-ए-ज़िंदगी
एक दो ख़्वाब अगर देख लिए जाएँगे