अगरचे रोज़ मिरा सब्र आज़माता है
मगर ये दरिया मुझे तैरना सिखाता है
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जीत और हार का इम्कान कहाँ देखते हैं
जैसा चाहा वैसा मंज़र देखा है
एक दो ख़्वाब अगर देख लिए जाएँगे
ख़ुदा का शुक्र कि आहट से ख़्वाब टूट गया
तुझ को बताएँ किस तरह, बैठे हैं कैसे हाल में
अब ऐसे दश्त-मिज़ाजों से दूर घर लिया जाए
दिलों में ख़ौफ़ के चूल्हे की आग ठंडी हो
हज़ार रस्ते तिरे हिज्र के इलाज के हैं
दिल क़नाअत ज़रा सी करता तो
आओ आँखें मिला के देखते हैं