उसे पता है कहाँ हाथ थामना है मिरा
उसे पता है कहाँ पेड़ सूख जाता है
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तुझ से कहना था हाल-ए-दिल लेकिन
दिलों में ख़ौफ़ के चूल्हे की आग ठंडी हो
कई तरह के तहाइफ़ पसंद हैं उस को
अब ऐसे दश्त-मिज़ाजों से दूर घर लिया जाए
ख़ुदा का शुक्र कि आहट से ख़्वाब टूट गया
एक तू, एक आशिक़ी मेरी
वस्ल नुक़सान कर गया मेरा
अगरचे रोज़ मिरा सब्र आज़माता है
ईंट से ईंट जोड़ कर, ख़्वाब बना रहा हूँ मैं
होता है मेहरबान कहाँ पर ख़ुदा-ए-इश्क़
तुझ आँख से झलकता था एहसास-ए-ज़िंदगी
ज़िंदगी देख तिरी ख़ास रिआयत होगी