अपना आप पड़ा रह जाता है बस इक अंदाज़े पर
आधे हम इस धरती पर हैं आधे उस सय्यारे पर
Parveen Shakir
Rahat Indori
Gulzar
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Javed Akhtar
Anwar Masood
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(446) Peoples Rate This
अगरचे रोज़ मिरा सब्र आज़माता है
उसे पता है कहाँ हाथ थामना है मिरा
एक तू, एक आशिक़ी मेरी
होता है मेहरबान कहाँ पर ख़ुदा-ए-इश्क़
क़ीमती शय थी तिरा हिज्र उठाए रक्खा
हज़ार रस्ते तिरे हिज्र के इलाज के हैं
ईंट से ईंट जोड़ कर, ख़्वाब बना रहा हूँ मैं
आधे घर में मैं होता हूँ आधे घर में तन्हाई
बर्फ़ पिघली तो रास्ता निकला
मैं हाव-हू पे कहानी को ख़त्म कर दूँगा
गए दिनों में ये इनआम होने वाला था
कई तरह के तहाइफ़ पसंद हैं उस को