दुख Poetry (page 16)

प्यारा प्यारा घर अपना

अज़मतुल्लाह ख़ाँ

सारे दुख सो जाएँगे लेकिन इक ऐसा ग़म भी है

अज़्म शाकरी

ख़ून आँसू बन गया आँखों में भर जाने के ब'अद

अज़्म शाकरी

घर में चाँदी के कोई सोने के दर रख जाएगा

अज़्म शाकरी

अपने दुख-दर्द का अफ़्साना बना लाया हूँ

अज़्म शाकरी

कितने मौसम सरगर्दां थे मुझ से हाथ मिलाने में

अज़्म बहज़ाद

वो दुख नसीब हुए ख़ुद-कफ़ील होने में

अज़ीज़ नबील

जाने कितने राज़ खुलें जिस दिन चेहरों की राख धुले

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

एक दिए ने सदियों क्या क्या देखा है बतलाए कौन

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

किनारों से जुदा होता नहीं तुग़्यानियों का दुख

अज़हर नक़वी

हर एक राह में इम्कान-ए-हादिसा है अभी

अज़हर नैयर

महरूमी के दुख और तन्हाई के रंज उठाए

अज़ीम मुर्तज़ा

वो जो किसी का रूप धार कर आया था

आज़ाद गुलाटी

आने वाले हादसों के ख़ौफ़ से सहमे हुए

आज़ाद गुलाटी

कुछ और हो भी तो राएगाँ है

अय्यूब ख़ावर

सोचों में लहू उछालते हैं

अय्यूब ख़ावर

न कोई दिन न कोई रात इंतिज़ार की है

अय्यूब ख़ावर

न कोई दिन न कोई रात इंतिज़ार की है

अय्यूब ख़ावर

लहरों में बदन उछालते हैं

अय्यूब ख़ावर

यक़ीन बरसों का इम्कान कुछ दिनों का हूँ

अतहर नासिक

कोई नहीं हमारा पुर्सान-ए-हाल अब के

अतीक़ुर्रहमान सफ़ी

बड़ा कठिन है रास्ता जो आ सको तो साथ दो

अता शाद

आने वाली कल की दे कर ख़बर गया ये दिन भी

असरार ज़ैदी

वो नख़्ल जो बार-वर हुए हैं

असलम अंसारी

अपनी हालत पे आँसू बहाने लगे

आसिमा ताहिर

पूछते क्या हो मिरे तुम दिल-ए-दीवाने से

आसिफ़ुद्दौला

हर तरफ़ है फ़ुसूँ मोहब्बत का

अासिफ़ शफ़ी

लहू रोता है

अशोक लाल

अजनबियत थी मगर ख़ामोश इस्तिफ़्सार पर

अशहर हाशमी

तारीख़ एक ख़ामोश ज़माना

असग़र नदीम सय्यद

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