दुश्मन Poetry (page 3)

इक अधूरी सी शाम बाक़ी है

वसीम अकरम

कुएँ जो पानी की बिन प्यास चाह रखते हैं

वक़ार हिल्म सय्यद नगलवी

कार्ल मार्क्स

वामिक़ जौनपुरी

किया है क़त्अ रिश्ता सुब्हा-ओ-ज़ुन्नार का हम ने

वलीउल्लाह मुहिब

किया बाग़-ए-जहाँ में नाम उन का सर्व कह कह कर

वलीउल्लाह मुहिब

जी चाहे का'बे जाओ जी चाहे बुत को पूजो

वलीउल्लाह मुहिब

उस को पहुँची ख़बर कि जीता हूँ

वली उज़लत

आज तक जो भी हुआ उस को भुला देना है

वाली आसी

आज तक जो भी हुआ उस को भुला देना है

वाली आसी

रात क़ातिल की गली हो जैसे

वजद चुगताई

चाहतों की जो दिल को आदत है

वजद चुगताई

आप ही अपना मैं दुश्मन हो गया

वजद चुगताई

ज़माना भी मुझ से ना-मुवाफ़िक़ मैं आप भी दुश्मन-ए-सलामत

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

तीर-ए-नज़र ने ज़ुल्म को एहसाँ बना दिया

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

पैमान-ए-वफ़ा-ए-यार हैं हम

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

किसी तरह दिन तो कट रहे हैं फ़रेब-ए-उम्मीद खा रहा हूँ

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

कहीं शुनवाई नहीं हुस्न की महफ़िल के ख़िलाफ़

वहीद अख़्तर

करना है कार-ए-ख़ैर तो फिर सर न देखना

विश्मा ख़ान विश्मा

यास ओ उमीद

उरूज क़ादरी

ख़ुद को हर रोज़ इम्तिहान में रख

उमैर मंज़र

न जाने क्या कमी थी चाहतों में

त्रिपुरारि

कम न थी सहरा से कुछ भी ख़ाना-वीरानी मिरी

तिलोकचंद महरूम

तेरी वफ़ा का हम को गुमाँ इस क़दर हुआ

तासीर सिद्दीक़ी

निरवान

ताऊस

इंतिज़ार

तनवीर अंजुम

इज़्हार-ए-जुनूँ बर-सर-ए-बाज़ार हुआ है

तनवीर अंजुम

वो जो मुमकिन न हो मुमकिन ये बना देता है

तैमूर हसन

तू ने क्या क़िंदील जला दी शहज़ादी

तहज़ीब हाफ़ी

किसे ख़बर है कि उम्र बस उस पे ग़ौर करने में कट रही है

तहज़ीब हाफ़ी

जहान-ए-दिल में सन्नाटा बहुत है

ताबिश मेहदी

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