दुश्मन Poetry (page 1)

बजाए कोई शहनाई मुझे अच्छा नहीं लगता

आमिर अमीर

तुझ को अपना के भी अपना नहीं होने देना

आमिर अमीर

नद्दी ये जैसे मौज में दरिया से जा मिले

जानाँ मलिक

बे-बसर आफ़ात से तकलीफ़ होती है मुझे

बशीर दादा

दिसम्बर की आवाज़

बलराज कोमल

दुश्मन की तरफ़ दोस्ती का हाथ

मुनीर नियाज़ी

ज़ाबता

हबीब जालिब

कुछ गुनह नहीं इस में ए'तिराफ़ ही कर लो

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

तेरा अंदाज़-ए-सुख़न सब से जुदा लगता है

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

ख़ुद को पाने की तलब में आरज़ू उस की भी थी

ज़ुहूर नज़र

धुआँ सिगरेट का बोतल का नशा सब दुश्मन-ए-जाँ हैं

ज़ुबैर रिज़वी

मैं ने कब बर्क़-ए-तपाँ मौज-ए-बला माँगी थी

ज़ुबैर रिज़वी

बिछड़ते दामनों में फूल की कुछ पत्तियाँ रख दो

ज़ुबैर रिज़वी

तिरी तस्वीर उठाई हुई है

ज़ुबैर क़ैसर

फ़ोन तो दूर वहाँ ख़त भी नहीं पहुँचेंगे

ज़िया मज़कूर

मेरे कमरे में इक ऐसी खिड़की है

ज़िया मज़कूर

जीने में आसानी रख

ज़िया ज़मीर

जाँ का दुश्मन है मगर जान से प्यारा भी है

ज़िया ज़मीर

क़िस्सा गुल-बादशाह का

ज़ेहरा निगाह

शाइरों

ज़ीशान साहिल

नज़्म

ज़ीशान साहिल

कहानी

ज़ीशान साहिल

घूमते हुए ग्लोब पर

ज़ीशान साहिल

ठहरा वही नायाब कि दामन में नहीं था

ज़ेब ग़ौरी

है सदफ़ गौहर से ख़ाली रौशनी क्यूँकर मिले

ज़ेब ग़ौरी

तमन्ना है किसी की तेग़ हो और अपनी गर्दन हो

ज़रीफ़ लखनवी

एहसास का क़िस्सा है सुनाना तो पड़ेगा

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

मैं अच्छा फ़नकार नहीं

ज़ाहिद इमरोज़

चमन में सैर-ए-गुल को जब कभी वो मह-जबीं निकले

ज़ाहिद चौधरी

मुँह छुपाना पड़े न दुश्मन से

ज़हीर देहलवी

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