वाचा Poetry (page 6)

दर आया अंधेरा आँखों में और सब मंज़र धुँदलाए हैं

शबनम शकील

बदल चुकी है हर इक याद अपनी सूरत भी

शबनम शकील

कीजिए और सवालात न ज़ाती मुझ से

शबनम रूमानी

नग़्मा यूँ साज़ में तड़पा मिरी जाँ हो जैसे

शानुल हक़ हक़्क़ी

ब-पास-ए-एहतियात-ए-आरज़ू ये बार-हा हुआ

शाद आरफ़ी

अभी तो मौसम-ए-ना-ख़ुश-गवार आएगा

शाद आरफ़ी

मैं तोड़ूँ अहद-ओ-पैमान-ए-वफ़ा ये हो नहीं सकता

सीमाब बटालवी

शायद अब ख़त्म हुआ चाहता है अहद-ए-सुकूत

सत्तार सय्यद

शहर-ए-ग़फ़लत के मकीं वैसे तो कब जागते हैं

सत्तार सय्यद

पस-ए-आइना ख़द-ओ-ख़ाल में कोई और था

सत्तार सय्यद

लहू में फूल खिलाने कहाँ से आते हैं

सत्तार सय्यद

ऐ ख़्वाब-ए-दिल-नवाज़ न आ कर सता मुझे

सरवर नेपाली

कभी तेग़-ए-तेज़ सुपुर्द की कभी तोहफ़ा-ए-गुल-ए-तर दिया

सरवत हुसैन

रौनक़-ए-अहद-ए-जवानी अलविदा'अ

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

मैं और मैं!

साक़ी फ़ारुक़ी

पाँव मारा था पहाड़ों पे तो पानी निकला

साक़ी फ़ारुक़ी

मैं एक रात मोहब्बत के साएबान में था

साक़ी फ़ारुक़ी

सालिम यक़ीन-ए-अज़्मत-ए-सेहर-ए-ख़ुदा न तोड़

सलीम शुजाअ अंसारी

ये फ़ैसला भी मिरे दस्त-ए-बा-कमाल में था

सलीम शाहिद

रौशन सुकूत सब उसी शो'ला-बयाँ से है

सलीम शाहिद

मिरी थकन मिरे क़स्द-ए-सफ़र से ज़ाहिर है

सलीम शाहिद

खुलती है गुफ़्तुगू से गिरह पेच-ओ-ताब की

सलीम शाहिद

फ़र्श-ए-ज़मीं पे बर्ग-ए-ख़िज़ानी का रंग है

सलीम शाहिद

वो जो हम-रही का ग़ुरूर था वो सवाद-ए-राह में जल-बुझा

सलीम कौसर

आख़िरी पड़ाव

सलीम फ़िगार

मजबूरियों का पास भी कुछ था वफ़ा के साथ

सलीम अहमद

ये धरती ख़ूब-सूरत है

सलाम मछली शहरी

हम ऐसे लोग जल्द असीर-ए-ख़िज़ाँ हुए

सलाम मछली शहरी

बन गई है मौत कितनी ख़ुश-अदा मेरे लिए

सलाम मछली शहरी

यही सुनते आए हैं हम-नशीं कभी अहद-ए-शौक़-ए-कमाल में

सज्जाद बाक़र रिज़वी

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