ईद Poetry (page 3)

मुझे क्यूँ न आवे साक़ी नज़र आफ़्ताब उल्टा

इंशा अल्लाह ख़ान

दम-ए-मर्ग बालीं पर आया तो होता

इमदाद अली बहर

दाग़ बैआ'ना हुस्न का न हुआ

इमदाद अली बहर

चूर सदमों से हो बईद नहीं

इमदाद अली बहर

पूछेगा जो वो रश्क-ए-क़मर हाल हमारा

हातिम अली मेहर

हर शब शब-ए-बरात है हर रोज़ रोज़-ए-ईद

हैदर अली आतिश

लिबास-ए-यार को मैं पारा-पारा क्या करता

हैदर अली आतिश

बला-ए-जाँ मुझे हर एक ख़ुश-जमाल हुआ

हैदर अली आतिश

ज़ेहन में दाएरे से बनाता रहा दूर ही दूर से मुस्कुराता रहा

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

चल दिए हम ऐ ग़म-ए-आलम विदाअ'

ग़ुलाम मौला क़लक़

कहते हैं ईद है आज अपनी भी ईद होती

ग़ुलाम भीक नैरंग

कहते हैं ईद है आज अपनी भी ईद होती

ग़ुलाम भीक नैरंग

बैठे हैं ईद को सब यार बग़ल में ले कर

ग़ज़नफ़र अली ग़ज़नफ़र

नहीं कि मुझ को क़यामत का ए'तिक़ाद नहीं

ग़ालिब

हुजूम-ए-नाला हैरत आजिज़-ए-अर्ज़-ए-यक-अफ़्ग़ँ है

ग़ालिब

नर्म फ़ज़ा की करवटें दिल को दुखा के रह गईं

फ़िराक़ गोरखपुरी

बीते लम्हे कशीद करती हूँ

फ़र्रुख़ ज़ोहरा गिलानी

वो सुब्ह-ए-ईद का मंज़र तिरे तसव्वुर में

फ़ानी बदायुनी

क़सम न खाओ तग़ाफ़ुल से बाज़ आने की

फ़ानी बदायुनी

अगस्त1955

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

उस से मिलना तो उसे ईद-मुबारक कहना

दिलावर अली आज़र

क़त्ल की सुन के ख़बर ईद मनाई मैं ने

दाग़ देहलवी

कहीं है ईद की शादी कहीं मातम है मक़्तल में

दाग़ देहलवी

मिन्नतों से भी न वो हूर-शमाइल आया

दाग़ देहलवी

मिलाते हो उसी को ख़ाक में जो दिल से मिलता है

दाग़ देहलवी

जब आया ईद का दिन घर में बेबसी की तरह

बिस्मिल साबरी

सहर हुई तो ख़यालों ने मुझ को घेर लिया

बिस्मिल साबरी

क्या मिले आप की महफ़िल में भला एक से एक

बेख़ुद देहलवी

हासिल उस मह-लक़ा की दीद नहीं

बेखुद बदायुनी

हासिल उस मह-लक़ा की दीद नहीं

बेखुद बदायुनी

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