हवा Poetry (page 8)

फिर वही तू साथ मेरे फिर वही बस्ती पुरानी

राजेन्द्र मनचंदा बानी

मिरे बदन में पिघलता हुआ सा कुछ तो है

राजेन्द्र मनचंदा बानी

मेहराब न क़िंदील न असरार न तमसील

राजेन्द्र मनचंदा बानी

इक ढेर राख में से शरर चुन रहा हूँ मैं

राजेन्द्र मनचंदा बानी

आसमाँ का सर्द सन्नाटा पिघलता जाएगा

राजेन्द्र मनचंदा बानी

फ़स्ल-ए-गुल में जो कोई शाख़-ए-सनोबर तोड़े

रजब अली बेग सुरूर

जैसे फ़साना ख़त्म हुआ

राज नारायण राज़

बखेड़े

राज नारायण राज़

जाने किस ख़्वाब का सय्याल नशा हूँ मैं भी

राज नारायण राज़

बूँदें पड़ी थीं छत पे कि सब लोग उठ गए

राज नारायण राज़

अशआर रंग रूप से महरूम क्या हुए

राज नारायण राज़

वो बाम पे फिर जल्वा-नुमा मेरे लिए है

राज कुमार सूरी नदीम

नतशे ने कहा

रईस फ़रोग़

शहर का शहर बसा है मुझ में

रईस फ़रोग़

गर्म ज़मीं पर आ बैठे हैं ख़ुश्क लब-ए-महरूम लिए

रईस फ़रोग़

फ़ज़ा मलूल थी मैं ने फ़ज़ा से कुछ न कहा

रईस फ़रोग़

हब्स के आलम में महबस की फ़ज़ा भी कम नहीं

रईस अमरोहवी

ग़ुरूब-ए-मेहर का मातम है गुलिस्तानों में

रईस अमरोहवी

वस्ल की रुत हो कि फ़ुर्क़त की फ़ज़ा मुझ से है

राहुल झा

हर एक शाख़ थी लर्ज़ां फ़ज़ा में चीख़-ओ-पुकार

राही फ़िदाई

ओस से भरा गिलास

इक़तिदार जावेद

इसी सबब से तो हम लोग पेश-ओ-पस में हैं

इक़बाल उमर

अंजाम-ए-वफ़ा भी देख लिया अब किस लिए सर ख़म होता है

इक़बाल सुहैल

फेंक यूँ पत्थर कि सत्ह-ए-आब भी बोझल न हो

इक़बाल साजिद

ख़ुश्क उस की ज़ात का सातों समुंदर हो गया

इक़बाल साजिद

उस को नग़्मों में समेटूँ तो बुका जाने है

इक़बाल मतीन

ये ख़ुश्क लब ये पाँव के छाले ये सर की धूल

इक़बाल हैदर

जो तेरे दर्द हैं वही सब मेरे दर्द हैं

इक़बाल हैदर

वो यूँ मिला कि ब-ज़ाहिर ख़फ़ा ख़फ़ा सा लगा

इक़बाल अज़ीम

अपने बदन को छोड़ के पछताओगे मियाँ

इंतिख़ाब सय्यद

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