हवा Poetry (page 7)

हवा ने सीने में ख़ंजर छुपा के रक्खा है

साहिबा शहरयार

हम को जन्नत की फ़ज़ा से भी ज़ियादा है अज़ीज़

सहर अंसारी

तंग आते भी नहीं कशमकश-ए-दहर से लोग

सहर अंसारी

मैं ढूँड लूँ अगर उस का कोई निशाँ देखूँ

सग़ीर मलाल

पूछा किसी ने हाल किसी का तो रो दिए

साग़र सिद्दीक़ी

चाक-ए-दामन को जो देखा तो मिला ईद का चाँद

साग़र सिद्दीक़ी

धूप में ग़म की मिरे साथ जो आया होगा

साग़र आज़मी

रस्तों पे न बैठो कि हवा तंग करेगी

सफ़दर सलीम सियाल

फिर कोई आ रहा है दिल के क़रीब

सफ़दर मीर

सुकूत-ए-मर्ग में क्यूँ राह-ए-नग़्मा-गर देखूँ

सादिक़ नसीम

शिकवे की चुभन मुझ को सदा अच्छी लगी है

सदफ़ जाफ़री

ज़ुल्फ़ लहरा के फ़ज़ा पहले मोअत्तर कर दे

सदा अम्बालवी

कहती है ये शाम की नर्म हवा फिर महकेगी इस घर की फ़ज़ा

साबिर ज़फ़र

अजब इक बे-यक़ीनी की फ़ज़ा है

साबिर ज़फ़र

नए कपड़े बदल और बाल बना तिरे चाहने वाले और भी हैं

साबिर ज़फ़र

आज की रात

साबिर दत्त

कहाँ पे बिछड़े थे हम लोग कुछ पता मिल जाए

सबा जायसी

हँसी की बात कि उस ने वहाँ बुला के मुझे

सादुल्लाह शाह

ना-मुकम्मल तआरुफ़

रियाज़ लतीफ़

सितम-ए-ना-रवा को रोते हैं

रियाज़ ख़ैराबादी

न कोई दोस्त न दुश्मन अजीब दुनिया है

रिफ़अत सरोश

बुझा बुझा के जलाता है दिल का शो'ला कौन

रिफ़अत सरोश

नई फ़ज़ा में नई दोस्ती पनप न सकी

रज़्ज़ाक़ अरशद

ऐ सुब्ह-ए-उमीद देर क्या है

राज़ी अख्तर शौक़

ये किस मक़ाम पे ठहरा है कारवान-ए-वफ़ा

रज़ा हमदानी

नज़र में धूल फ़ज़ा में ग़ुबार चारों तरफ़

राशिद अनवर राशिद

रात के साए

राशिद आज़र

ऐ दिल इस का तुझे अंदाज़-ए-सुख़न याद नहीं

रशीद रामपुरी

ये ज़रा सा कुछ और एक-दम बे-हिसाब सा कुछ

राजेन्द्र मनचंदा बानी

सियाह-ख़ाना-ए-उम्मीद-ए-राएगाँ से निकल

राजेन्द्र मनचंदा बानी

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