हवा Poetry (page 10)

चश्म-ए-पुर-नम अभी मरहून-ए-असर हो न सकी

हनीफ़ फ़ौक़

इतना सुकून तो ग़म-ए-पिन्हाँ में आ गया

हनीफ़ अख़गर

एक क़तरा न कहीं ख़ूँ का बहा मेरे बअ'द

हमदम कशमीरी

कोई पयाम अब न पयम्बर ही आएगा

हकीम मंज़ूर

फ़स्ल-ए-ग़म की जब नौ-ख़ेज़ी हो जाती है

हैदर क़ुरैशी

शाएर

हफ़ीज़ जालंधरी

मेरी शाएरी

हफ़ीज़ जालंधरी

कहाँ कहाँ न तसव्वुर ने दाम फैलाए

हफ़ीज़ होशियारपुरी

तू न हो हम-नफ़स अगर जीने का लुत्फ़ ही नहीं

हादी मछलीशहरी

ये और बात तेरी गली में न आएँ हम

हबीब जालिब

फिर दिल से आ रही है सदा उस गली में चल

हबीब जालिब

गुलशन की फ़ज़ा धुआँ धुआँ है

हबीब जालिब

दिल वालो क्यूँ दिल सी दौलत यूँ बे-कार लुटाते हो

हबीब जालिब

क्या बताएँ आप से क्या हस्ती-ए-इंसान है

ग्यान चन्द

क्या बताएँ आप से क्या हस्ती-ए-इंसान है

ग्यान चन्द

कितनी सदियाँ ना-रसी की इंतिहा में खो गईं

गुलज़ार बुख़ारी

बम धमाका

गुलनाज़ कौसर

तारीकियों में अपनी ज़िया छोड़ जाऊँगा

गुहर खैराबादी

सुब्ह तक जिन से बहुत बेज़ार हो जाता हूँ मैं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

अभी आइना मुज़्महिल है

ग़ुफ़रान अमजद

लिपट रही हैं जो तुझ से दुआएँ मेरी हैं

ग़यास अंजुम

ब-नाला हासिल-ए-दिल-बस्तगी फ़राहम कर

ग़ालिब

ज़ौक़-ए-नज़र को जल्वा-ए-बेताब ले गया

फ़ितरत अंसारी

कुछ क़फ़स की तीलियों से छन रहा है नूर सा

फ़िराक़ गोरखपुरी

परछाइयाँ

फ़िराक़ गोरखपुरी

आधी रात

फ़िराक़ गोरखपुरी

शाम-ए-ग़म कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो

फ़िराक़ गोरखपुरी

नर्म फ़ज़ा की करवटें दिल को दुखा के रह गईं

फ़िराक़ गोरखपुरी

इक रोज़ हुए थे कुछ इशारात ख़फ़ी से

फ़िराक़ गोरखपुरी

अपने ग़म का मुझे कहाँ ग़म है

फ़िराक़ गोरखपुरी

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