सड़क Poetry (page 20)

उस के लहजे का वो उतार चढ़ाओ

अहमद जावेद

गेरवे कपड़े बदन पर हाथ लोहे के कड़े

अहमद जहाँगीर

मुहासरा

अहमद फ़राज़

तिरा क़ुर्ब था कि फ़िराक़ था वही तेरी जल्वागरी रही

अहमद फ़राज़

सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं

अहमद फ़राज़

दुख फ़साना नहीं कि तुझ से कहें

अहमद फ़राज़

ये मिरा वहम तो कुछ और सुना जाता है

अहमद अता

चप्पा चप्पा उस की गली का रहा है मेरे ज़ेर-ए-क़दम

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

इस के घर से मेरे घर तक एक कहानी बीच में है

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

तिरी गली में जो धूनी रमाए बैठे हैं

आग़ा हज्जू शरफ़

सुबू उठाऊँ तो पीने के बीच खुलती है

अफ़ज़ाल नवेद

दिखाई दे कि शुआ-ए-बसीर खींचता हूँ

अफ़ज़ाल नवेद

अपने ही तले आई ज़मीनों से निकल कर

अफ़ज़ाल नवेद

आवाज़ की दीवार भी चुप-चाप खड़ी थी

आदिल मंसूरी

तंग तारीक गली में कुत्ता

आदिल मंसूरी

जो चीज़ थी कमरे में वो बे-रब्त पड़ी थी

आदिल मंसूरी

जीता है सिर्फ़ तेरे लिए कौन मर के देख

आदिल मंसूरी

गाँठी है उस ने दोस्ती इक पेश-इमाम से

आदिल मंसूरी

चारों तरफ़ से मौत ने घेरा है ज़ीस्त को

आदिल मंसूरी

फ़ासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था

अदीम हाशमी

इक खिलौना टूट जाएगा नया मिल जाएगा

अदीम हाशमी

किस की ख़ल्वत से निखर कर सुब्ह-दम आती है धूप

अदीब ख़लवत

क्यूँ

अदा जाफ़री

गुलों सी गुफ़्तुगू करें क़यामतों के दरमियाँ

अदा जाफ़री

आलम ही और था जो शनासाइयों में था

अदा जाफ़री

शिकस्त-ए-अहद पर इस के सिवा बहाना भी क्या

अबुल हसनात हक़्क़ी

क़ौल 'आबरू' का था कि न जाऊँगा उस गली

आबरू शाह मुबारक

दिलदार की गली में मुकर्रर गए हैं हम

आबरू शाह मुबारक

सैर-ए-बहार-ए-हुस्न ही अँखियों का काम जान

आबरू शाह मुबारक

मगर तुम सीं हुआ है आश्ना दिल

आबरू शाह मुबारक

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