ग़ज़ल Poetry (page 14)

मतला ग़ज़ल का ग़ैर ज़रूरी क्या क्यूँ कब का हिस्सा है

इदरीस बाबर

दिल में है इत्तिफ़ाक़ से दश्त भी घर के साथ साथ

इदरीस बाबर

उस की इक दुनिया हूँ मैं और मेरी इक दुनिया है वो

इब्राहीम अश्क

अना ने टूट के कुछ फ़ैसला किया ही नहीं

इब्राहीम अश्क

सब माया है

इब्न-ए-इंशा

ऐ मिरे सोच-नगर की रानी

इब्न-ए-इंशा

कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा

इब्न-ए-इंशा

जल्वा-नुमाई बे-परवाई हाँ यही रीत जहाँ की है

इब्न-ए-इंशा

'इंशा'-जी है नाम उन्ही का चाहो तो तुम से मिलवाएँ

इब्न-ए-इंशा

दिल सी चीज़ के गाहक होंगे दो या एक हज़ार के बीच

इब्न-ए-इंशा

वो दिल जो था किसी के ग़म का महरम हो गया रुस्वा

हुरमतुल इकराम

दिल को तौफ़ीक़-ए-ज़ियाँ हो तो ग़ज़ल होती है

हुरमतुल इकराम

आँखों से किसी ख़्वाब को बाहर नहीं देखा

हुमैरा राहत

ये शहर-ए-रफ़ीक़ाँ है दिल-ए-ज़ार सँभल के

हिमायत अली शाएर

ये विसाल ओ हिज्र का मसअला तो मिरी समझ में न आ सका

हिलाल फ़रीद

वक़्त ने रंग बहुत बदले क्या कुछ सैलाब नहीं आए

हिलाल फ़रीद

वही हुआ कि ख़ुद भी जिस का ख़ौफ़ था मुझे

हिलाल फ़रीद

थी अजब ही दास्ताँ जब तमाम हो गई

हिलाल फ़रीद

हम ख़ुद भी हुए नादिम जब हर्फ़-ए-दुआ निकला

हिलाल फ़रीद

आँसू तो कोई आँख में लाया नहीं हूँ मैं

हिलाल फ़रीद

मिरे कलाम में पेचीदा इस्तिआ'रा नहीं

हज़ीं लुधियानवी

मवाद कर के फ़राहम चमकती सड़कों से

हज़ीं लुधियानवी

ये जो हर शय में तिरी जल्वागरी है ऐ दोस्त

हज़ार लखनवी

उस ज़ुल्फ़ के सौदे का ख़लल जाए तो अच्छा

हातिम अली मेहर

गुल-बाँग थी गुलों की हमारा तराना था

हातिम अली मेहर

छोड़ेंगे गरेबाँ का न इक तार कभी हम

हातिम अली मेहर

शीशे के मुक़द्दर में बदल क्यूँ नहीं होता

हस्तीमल हस्ती

यूँ तो आशिक़ तिरा ज़माना हुआ

हसरत मोहानी

पैहम दिया प्याला-ए-मय बरमला दिया

हसरत मोहानी

लफ़्ज़ों के हेर-फेर से बनती नहीं ग़ज़ल

हसनैन आक़िब

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