ग़ज़ल Poetry (page 13)

मुझ पर निगाह-ए-गर्दिश-ए-दौराँ नहीं रही

इक़बाल आबिदी

काम आ गई है गर्दिश-ए-दौराँ कभी कभी

इक़बाल आबिदी

साहब के हर्ज़ा-पन से हर एक को गिला है

इंशा अल्लाह ख़ान

क्या भला शैख़-जी थे दैर में थोड़े पत्थर

इंशा अल्लाह ख़ान

जाड़े में क्या मज़ा हो वो तो सिमट रहे हों

इंशा अल्लाह ख़ान

है मुझ को रब्त बस-कि ग़ज़ालान-ए-रम के साथ

इंशा अल्लाह ख़ान

है जिस में क़ुफ़्ल-ए-ख़ाना-ए-ख़ुम्मार तोड़िए

इंशा अल्लाह ख़ान

बात के साथ ही मौजूद है टाल एक न एक

इंशा अल्लाह ख़ान

अमरद हुए हैं तेरे ख़रीदार चार पाँच

इंशा अल्लाह ख़ान

रौशनी फूट निकली मिसरों से

इन्दिरा वर्मा

वो अजीब शख़्स था भीड़ में जो नज़र में ऐसे उतर गया

इन्दिरा वर्मा

दिल के बेचैन जज़ीरों में उतर जाएगा

इन्दिरा वर्मा

आज फिर चाँद उस ने माँगा है

इन्दिरा वर्मा

बात दिल को मिरे लगी नहीं है

इमरान आमी

कब ग़ैर हुआ महव तिरी जल्वागरी का

इम्दाद इमाम असर

दिल से क्या पूछता है ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर से पूछ

इम्दाद इमाम असर

ख़ुर्शीद-रुख़ों का सामना है

इमदाद अली बहर

जब कि सर पर वबाल आता है

इमदाद अली बहर

तुम्हारे जाते ही हर चश्म-ए-तर को देखते हैं

इमाम अाज़म

तक़दीर-ए-वफ़ा का फूट जाना

इफ़्तिख़ार राग़िब

इक बड़ी जंग लड़ रहा हूँ

इफ़्तिख़ार राग़िब

छोड़ा न मुझे दिल ने मिरी जान कहीं का

इफ़्तिख़ार राग़िब

अंदाज़-ए-सितम उन का निहायत ही अलग है

इफ़्तिख़ार राग़िब

जमाल-गाह-ए-तग़ज़्ज़ुल की ताब-ओ-तब तिरी याद

इफ़्तिख़ार मुग़ल

हर मुश्किल आसान बनाने वाला था

इफ़्तिख़ार फलक काज़मी

कहीं कहीं से कुछ मिसरे एक-आध ग़ज़ल कुछ शेर

इफ़्तिख़ार आरिफ़

वफ़ा की ख़ैर मनाता हूँ बेवफ़ाई में भी

इफ़्तिख़ार आरिफ़

सजल कि शोर ज़मीनों में आशियाना करे

इफ़्तिख़ार आरिफ़

कुछ भी नहीं कहीं नहीं ख़्वाब के इख़्तियार में

इफ़्तिख़ार आरिफ़

जैसा हूँ वैसा क्यूँ हूँ समझा सकता था मैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

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