कहीं कहीं से कुछ मिसरे एक-आध ग़ज़ल कुछ शेर
इस पूँजी पर कितना शोर मचा सकता था मैं
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मिरा ख़ुश-ख़िराम बला का तेज़-ख़िराम था
वही है ख़्वाब जिसे मिल के सब ने देखा था
दुआएँ याद करा दी गई थीं बचपन में
वो हम नहीं थे तो फिर कौन था सर-ए-बाज़ार
एक था राजा छोटा सा
मिरे ख़ुदा मुझे इतना तो मो'तबर कर दे
बिखर जाएँगे हम क्या जब तमाशा ख़त्म होगा
दुख और तरह के हैं दुआ और तरह की
समझ रहे हैं मगर बोलने का यारा नहीं
शहर-ए-गुल के ख़स-ओ-ख़ाशाक से ख़ौफ़ आता है
कूच
वफ़ा की ख़ैर मनाता हूँ बेवफ़ाई में भी