करें तो किस से करें ना-रसाइयों का गिला
सफ़र तमाम हुआ हम-सफ़र नहीं आया
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मुल्क-ए-सुख़न में दर्द की दौलत को क्या हुआ
ख़ुद को बिखरते देखते हैं कुछ कर नहीं पाते हैं
वो मेरे नाम की निस्बत से मो'तबर ठहरे
वही है ख़्वाब जिसे मिल के सब ने देखा था
मआल-ए-इज़्ज़त-ए-सादात-ए-इश्क़ देख के हम
बस एक ख़्वाब की सूरत कहीं है घर मेरा
ये नक़्श हम जो सर-ए-लौह-ए-जाँ बनाते हैं
कुछ देर पहले नींद से
दयार-ए-नूर में तीरा-शबों का साथी हो
ये बस्ती जानी पहचानी बहुत है
दोस्त क्या ख़ुद को भी पुर्सिश की इजाज़त नहीं दी