ख़ुद को बिखरते देखते हैं कुछ कर नहीं पाते हैं
फिर भी लोग ख़ुदाओं जैसी बातें करते हैं
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
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पयम्बरों से ज़मीनें वफ़ा नहीं करतीं
दुख और तरह के हैं दुआ और तरह की
सिपाह-ए-शाम के नेज़े पे आफ़्ताब का सर
यही लौ थी कि उलझती रही हर रात के साथ
शिकस्ता-पर जुनूँ को आज़माएँगे नहीं क्या
खुला फ़रेब-ए-मोहब्बत दिखाई देता है
सितारों से भरा ये आसमाँ कैसा लगेगा
सितारा-वार जले फिर बुझा दिए गए हम
शहर-आशोब
इंतिबाह
मुंहदिम होता चला जाता है दिल साल-ब-साल
रिंद मस्जिद में गए तो उँगलियाँ उठने लगीं