ग़ज़ल Poetry (page 11)

ये दौर-ए-कम-नज़राँ है तो फिर सिला कैसा

राज़ी अख्तर शौक़

सफ़र कठिन ही सही क्या अजब था साथ उस का

राज़ी अख्तर शौक़

फिर जो देखा दूर तक इक ख़ामुशी पाई गई

राज़ी अख्तर शौक़

न फ़ासले कोई रखना न क़ुर्बतें रखना

राज़ी अख्तर शौक़

छेड़ के साज़-ए-ज़रगरी ख़ल्क़-ए-ख़ुदा है रक़्स में

राज़ी अख्तर शौक़

अब सफ़र हो तो कोई ख़्वाब-नुमा ले जाए

राज़ी अख्तर शौक़

आए हम शहर-ए-ग़ज़ल में तो इस आग़ाज़ के साथ

राज़ी अख्तर शौक़

ये वक़्त जब भी लहू का ख़िराज माँगता है

रज़ा मौरान्वी

मौत भी आती नहीं हिज्र के बीमारों को

रज़ा अज़ीमाबादी

अब्र है अब्र है शराब शराब

रज़ा अज़ीमाबादी

अब तो तुम भी जवाँ हुए हो देखेंगे दिल को बचाओगे तुम

रज़ा अज़ीमाबादी

सवाद-ए-शहर में थोड़ी सी ये जो जन्नत है

रज़ा अश्क

उम्र-ए-अबद से ख़िज़्र को बे-ज़ार देख कर

रविश सिद्दीक़ी

पशेमाँ हैं तर्क-ए-मोहब्बत के बा'द

रविश सिद्दीक़ी

कहने को सब फ़साना-ए-ग़ैब-ओ-शुहूद था

रविश सिद्दीक़ी

हुस्न-ए-असनाम ब-हर-लम्हा फ़ुज़ूँ है कि नहीं

रविश सिद्दीक़ी

एक लग़्ज़िश में दर-ए-पीर-ए-मुग़ाँ तक पहुँचे

रविश सिद्दीक़ी

चला है ले के मुझे ज़ौक़-ए-जुस्तुजू मेरा

रविश सिद्दीक़ी

बुत-गर है न कोई बुत-शिकन है

रविश सिद्दीक़ी

यूँही हँसते हुए छोड़ेंगे ग़ज़ल की महफ़िल

रउफ़ रज़ा

तुम भी इस सूखते तालाब का चेहरा देखो

रउफ़ रज़ा

सब होत न होत से नथरी हुई आसान ग़ज़ल हूँ छा के सुनो

रउफ़ रज़ा

जो क़र्ज़ मुझ पे है वो बोझ उतारता जाऊँ

राशिद मुफ़्ती

दुनिया में है यूँ तो कौन बे-ग़म

राशिद मुफ़्ती

इन हसीनों की मोहब्बत का भरोसा क्या है

रशीद रामपुरी

मिरी जबीं का मुक़द्दर कहीं रक़म भी तो हो

रशीद क़ैसरानी

मैं ने कहीं थीं आप से बातें भली भली

रशीद क़ैसरानी

कोई तो है कि नए रास्ते दिखाए मुझे

रशीद निसार

सिलसिला-जुम्बान-ए-वहशत में नई तदबीर से

रशीद लखनवी

आरिज़ों को तिरे कँवल कहना

रसा चुग़ताई

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