ग़ज़ल Poetry (page 9)

उन को देखा तो तबीअ'त में रवानी आई

सरदार सोज़

वहम जैसी शुकूक जैसी चीज़

सरदार सलीम

फ़िक्र ओ एहसास के तपते हुए मंज़र तक आ

सरदार सलीम

नाला शब-ए-फ़िराक़ जो कोई निकल गया

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

कुछ बद-गुमानियाँ हैं कुछ बद-ज़बानियाँ हैं

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

आधा कमरा

सारा शगुफ़्ता

किसी क़िस्मत में एक घर निकला

सलमान अख़्तर

हम जो पहले कहीं मिले होते

सलमान अख़्तर

अबजद

सलीम शहज़ाद

ऐ शब-ए-हिज्र अब मुझे सुब्ह-ए-विसाल चाहिए

सलीम कौसर

देख माज़ी के दरीचों को कभी खोला न कर

सलीम फ़राज़

मुझ को सज़ा-ए-मौत का धोका दिया गया

सलीम अंसारी

तिरी जानिब से दिल में वसवसे हैं

सलीम अहमद

न जाने शेर में किस दर्द का हवाला था

सलीम अहमद

मेरी ग़ज़ल में एक नया सोज़-ए-जाँ भी है

सलीम अहमद

रुख़-ए-रौशन पे सफ़ा लोट गई

सख़ी लख़नवी

ना-ख़ुश जो हो गुल-बदन किसी का

सख़ी लख़नवी

ज़ख़्म खुले पड़ते हैं दिल के मौसम है ये बहारों का

सज्जाद बाक़र रिज़वी

वो घिर के आया घटाओं की तीरगी की तरह

सज्जाद बाक़र रिज़वी

उन से वो रस्म-ए-मुलाक़ात चली जाती है

सज्जाद बाक़र रिज़वी

मैं हम-नफ़साँ जिस्म हूँ वो जाँ की तरह था

सज्जाद बाक़र रिज़वी

मैं हम-नफ़साँ जिस्म हूँ वो जाँ की तरह था

सज्जाद बाक़र रिज़वी

कार-ए-वहशत में भी मजबूर है इंसाँ अब तक

सज्जाद बाक़र रिज़वी

दिल दश्त है वफ़ूर-ए-तमन्ना ग़ुबार है

सज्जाद बाक़र रिज़वी

'बाक़र' निशाना-ए-ग़म-ओ-रंज-ओ-अलम तो हो

सज्जाद बाक़र रिज़वी

दिखाई देंगी सभी मुम्किनात काग़ज़ पर

सज्जाद बलूच

मियाँ वो जान कतराने लगी है

साजिद प्रेमी

दयार-ए-दिल से किसी का गुज़र ज़रूरी था

साइम जी

ओढ़ी रिदा-ए-दर्द भी हालात की तरह

सैफ़ ज़ुल्फ़ी

शिकस्त-ए-ज़िंदाँ

साहिर लुधियानवी

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