यूँही हँसते हुए छोड़ेंगे ग़ज़ल की महफ़िल
एक आँसू से ज़ियादा कोई रोने का नहीं
Wasi Shah
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
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Ahmad Faraz
Gulzar
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
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हर मौसम में ख़ाली-पन की मजबूरी हो जाओगे
सब होत न होत से नथरी हुई आसान ग़ज़ल हूँ छा के सुनो
कोई ज़ख़्म खुला तो सहने लगे कोई टीस उठी लहराने लगे
क़रीब भी तो नहीं हो कि आ के सो जाओ
बहुत ख़ूबियाँ हैं हवस-कार दिल में
ये मिरी रूह सियह रात में निकली है कहाँ
वो ये कहते हैं सदा हो तो तुम्हारे जैसी
इसी बिखरे हुए लहजे पे गुज़ारे जाओ
जितना पाता हूँ गँवा देता हूँ
जो भी कुछ अच्छा बुरा होना है जल्दी हो जाए
वो तो नहीं मिला है साँसों जिए तो क्या है
नाश्ते पर जिसे आज़ाद किया है मैं ने