ग़ज़ल Poetry (page 15)

ग़म उठाता हूँ ग़ज़ल कहता हूँ जीता रहता हूँ

हसनैन आक़िब

खोए हुए पलों की कोई बात भी तो हो

हसनैन आक़िब

हार कर बाज़ी फिर इक तदबीर हो जाऊँगा मैं

हसनैन आक़िब

जो बात हक़ीक़त हो बे-ख़ौफ़-ओ-ख़तर कहिए

हसीब रहबर

हवा के रुख़ पर चराग़-ए-उल्फ़त की लौ बढ़ा कर चला गया है

हसन रिज़वी

चुप हैं हुज़ूर मुझ से कोई बात हो गई

हसन रिज़वी

उसी ख़ुश-नवा में हैं सब हुनर मुझे पहले था न क़यास भी

हसन नईम

सुब्ह-ए-तरब तो मस्त-ओ-ग़ज़ल-ख़्वाँ गुज़र गई

हसन नईम

क़सीदा तुझ से ग़ज़ल तुझ से मर्सिया तुझ से

हसन नईम

मुझ को कोई भी सिला मिलने में दुश्वारी न थी

हसन नईम

मैं ग़ज़ल का हर्फ़-ए-इम्काँ मसनवी का ख़्वाब हूँ

हसन नईम

बिछ्ड़ें तो शहर भर में किसी को पता न हो

हसन नईम

आरज़ू थी कि तिरा दहर भी शोहरा होवे

हसन नईम

आँखों में बस रहा है अदा के बग़ैर भी

हसन नईम

अपनी वज्ह-ए-बर्बादी जानते हैं हम लेकिन क्या करें बयाँ लोगो

हसन कमाल

देखे अगर ये गर्मी-ए-बाज़ार आफ़्ताब

हसन बरेलवी

जलती हुई रुतों के ख़रीदार कौन हैं

हसन अख्तर जलील

सुब्ह आँख खुलती है एक दिन निकलता है

हसन आबिदी

ये क्या ख़बर थी कि जब तुम से दोस्ती होगी

हरबंस लाल अनेजा 'जमाल'

हर ज़र्रा है जमाल की दुनिया लिए हुए

हेंसन रेहानी

आज सौदा-ए-मोहब्बत की ये अर्ज़ानी है

हेंसन रेहानी

बिखर के रेत हुए हैं वो ख़्वाब देखे हैं

हनीफ़ कैफ़ी

नफ़स नफ़स ने उड़ाईं हवाइयाँ क्या क्या

हनीफ़ अख़गर

जल्वों का जो तेरे कोई प्यासा नज़र आया

हनीफ़ अख़गर

अपनी नज़रों को भी दीवार समझता होगा

हनीफ़ अख़गर

हर्फ़-ए-ग़ज़ल से रंग-ए-तमन्ना भी छीन ले

हमीद अलमास

घर है तो दर भी होगा दीवार भी रहेगी

हमीद अलमास

हम अपने आप को फिर आज़मा के देखेंगे

हमदम कशमीरी

जो होनी थी वो हम-नशीं हो चुकी

हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा

चर्चा हमारा इश्क़ ने क्यूँ जा-ब-जा किया

हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा

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