ग़ज़ल Poetry (page 16)

बहिश्त-ए-बरीँ

हाजी लक़ लक़

सुन तो सही जहाँ में है तेरा फ़साना क्या

हैदर अली आतिश

पीरी से मिरा नौ दिगर-हाल हुआ है

हैदर अली आतिश

बुलबुल को ख़ार ख़ार-ए-दबिस्ताँ है इन दिनों

हैदर अली आतिश

शो'ला-ए-दर्द ब-उन्वान-ए-तजल्ला ही सही

हाफ़िज़ लुधियानवी

हर शे'र ग़ज़ल का कह रहा है

हाफ़िज़ लुधियानवी

ये सब कहने की बातें हैं कि ऐसा हो नहीं सकता

हफ़ीज़ जौनपुरी

बिगड़ जाते थे सुन कर याद है कुछ वो ज़माना भी

हफ़ीज़ जौनपुरी

मुद्दतों तक जो पढ़ाया किया उस्ताद मुझे

हफ़ीज़ जालंधरी

फिर से आराइश-ए-हस्ती के जो सामाँ होंगे

हफ़ीज़ होशियारपुरी

कहाँ कहाँ न तसव्वुर ने दाम फैलाए

हफ़ीज़ होशियारपुरी

जो नज़र से बयान होती है

हफ़ीज़ बनारसी

फिर कभी लौट कर न आएँगे

हबीब जालिब

फिर दिल से आ रही है सदा उस गली में चल

हबीब जालिब

जब कोई कली सेहन-ए-गुलिस्ताँ में खिली है

हबीब जालिब

गुलशन की फ़ज़ा धुआँ धुआँ है

हबीब जालिब

साग़र में शक्ल-ए-दुख़्तर-ए-रज़ कुछ बदल गई

गुस्ताख़ रामपुरी

कोई अटका हुआ है पल शायद

गुलज़ार

हर गाम पे ही साए से इक मिस्रा-ए-मौज़ूँ

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

भूला है बा'द-ए-मर्ग मुझे दोस्त याँ तलक

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए

गोपालदास नीरज

सब रंग ना-तमाम हों हल्का लिबास हो

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

फिर वो दरिया है किनारों से छलकने वाला

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

मिलने की हर आस के पीछे अन-देखी मजबूरी थी

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

दर्द के चाँद की तस्वीर ग़ज़ल में आए

ग़यास अंजुम

जहाँ ख़राब सही हम बदन-दरीदा सही

ग़ालिब अयाज़

हुस्न के ज़ेर-ए-बार हो कि न हो

ग़ालिब अयाज़

कुछ तो पढ़िए कि लोग कहते हैं

ग़ालिब

शिकवे के नाम से बे-मेहर ख़फ़ा होता है

ग़ालिब

सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं

ग़ालिब

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