हर गाम पे ही साए से इक मिस्रा-ए-मौज़ूँ
गर चंद क़दम चलिए तो क्या ख़ूब ग़ज़ल हो
Allama Iqbal
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Gulzar
Habib Jalib
Parveen Shakir
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(703) Peoples Rate This
दर पे नालाँ जो हूँ तो कहता है
किस नाज़ से वाह हम को मारा
न होगा कोई मुझ सा महव-ए-तसव्वुर
तकल्लुम जो कोई करता है फ़ानी
क्या हैं शैदा-ए-क़द्द-ए-यार दरख़्त
दिमाग़ और ही पाती हैं इन हसीनों में
ऐ जुनूँ हाथ जो वो ज़ुल्फ़ न आई होती
जामा-ए-सुर्ख़ तिरा देख के गुल
तुम वफ़ा का एवज़ जफ़ा समझे
न मर के भी तिरी सूरत को देखने दूँगा
हसरत ऐ जाँ शब-ए-जुदाई है