न होगा कोई मुझ सा महव-ए-तसव्वुर
जिसे देखता हूँ समझता हूँ तू है
Rahat Indori
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हसरत ऐ जाँ शब-ए-जुदाई है
हाथ से कुछ न तिरे ऐ मह-ए-कनआँ होगा
किस नाज़ से वाह हम को मारा
न मर के भी तिरी सूरत को देखने दूँगा
नासेहा आशिक़ी में रख मा'ज़ूर
ज़ोफ़ से रहता है अब पाँव पे सर
बिजली चमकी तो अब्र रोया
नीम बिस्मिल की क्या अदा है ये
आसमाँ कहते हैं जिस को वो ज़मीन-ए-शेर है
गया है कूचा-ए-काकुल में अब दिल
अपने सिवा नहीं है कोई अपना आश्ना
नक़्श-ए-पा पंच-शाख़ा क़बर पर रौशन करो