नक़्श-ए-पा पंच-शाख़ा क़बर पर रौशन करो
मर गया हूँ मैं तुम्हारी गरमी-ए-रफ़्तार पर
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न होगा कोई मुझ सा महव-ए-तसव्वुर
लब-ए-जाँ-बख़्श पे दम अपना फ़ना होता है
अपने सिवा नहीं है कोई अपना आश्ना
किस नाज़ से वाह हम को मारा
अपना हर उज़्व चश्म-ए-बीना है
ज़ोफ़ से रहता है अब पाँव पे सर
उल्फ़त ये छुपाएँ हम किसी की
गर हमारे क़त्ल के मज़मूँ का वो नामा लिखे
ज़ाहिदो क़ुदरत-ए-ख़ुदा देखो
मुँह ढाँप के मैं जो रो रहा हूँ
नासेहा आशिक़ी में रख मा'ज़ूर
ऐ जुनूँ हाथ जो वो ज़ुल्फ़ न आई होती