गर हमारे क़त्ल के मज़मूँ का वो नामा लिखे
बैज़ा-ए-फ़ौलाद से निकलें कबूतर सैकड़ों
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जो पिन्हाँ था वही हर सू अयाँ है
नज़्ज़ारा-ए-रुख़-ए-साक़ी से मुझ को मस्ती है
ज़ाहिदो क़ुदरत-ए-ख़ुदा देखो
क़त्ल उश्शाक़ किया करते हैं
न मर के भी तिरी सूरत को देखने दूँगा
गया है कूचा-ए-काकुल में अब दिल
किस नाज़ से वाह हम को मारा
नीम बिस्मिल की क्या अदा है ये
हसरत ऐ जाँ शब-ए-जुदाई है
आसमाँ कहते हैं जिस को वो ज़मीन-ए-शेर है
सारे क़ुरआन से उस परी-रू को
उल्फ़त ये छुपाएँ हम किसी की