ज़ाहिदो क़ुदरत-ए-ख़ुदा देखो
बुत को भी दावा-ए-ख़ुदाई है
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
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Anwar Masood
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Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
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ख़ून मिरा कर के लगाना न हिना मेरे ब'अद
इत्र मिट्टी का लगाया चाहिए पोशाक में
अपना हर उज़्व चश्म-ए-बीना है
दुआएँ माँगीं हैं मुद्दतों तक झुका के सर हाथ उठा उठा कर
दिमाग़ और ही पाती हैं इन हसीनों में
ठुकरा के चले जबीं को मेरी
अपने सिवा नहीं है कोई अपना आश्ना
जामा-ए-सुर्ख़ तिरा देख के गुल
आसमाँ कहते हैं जिस को वो ज़मीन-ए-शेर है
उस को ग़फ़लत-पेशा कह आते हैं हम
बिजली चमकी तो अब्र रोया
लब-ए-जाँ-बख़्श पे दम अपना फ़ना होता है