ठुकरा के चले जबीं को मेरी
क़िस्मत की लिखी ने यावरी की
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क्या हैं शैदा-ए-क़द्द-ए-यार दरख़्त
मिस्ल-ए-तिफ़्लाँ वहशियों से ज़िद है चर्ख़-ए-पीर को
लब-ए-जाँ-बख़्श पे दम अपना फ़ना होता है
सारे क़ुरआन से उस परी-रू को
इत्र मिट्टी का लगाया चाहिए पोशाक में
अपना हर उज़्व चश्म-ए-बीना है
नज़्ज़ारा-ए-रुख़-ए-साक़ी से मुझ को मस्ती है
दर पे नालाँ जो हूँ तो कहता है
नासेहा आशिक़ी में रख मा'ज़ूर
सख़्त है हैरत हमें जो ज़ेर-ए-अबरू ख़ाल है
नीम बिस्मिल की क्या अदा है ये
उस को मुझ से रुठा दिया किस ने