दर पे नालाँ जो हूँ तो कहता है
पूछो क्या चीज़ बेचता है ये
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किस नाज़ से वाह हम को मारा
दुआएँ माँगीं हैं मुद्दतों तक झुका के सर हाथ उठा उठा कर
क्यूँकर न ख़ुश हो सर मिरा लटक्का के दार में
उस को मुझ से रुठा दिया किस ने
नासेहा आशिक़ी में रख मा'ज़ूर
नज़्ज़ारा-ए-रुख़-ए-साक़ी से मुझ को मस्ती है
उस को ग़फ़लत-पेशा कह आते हैं हम
नीम बिस्मिल की क्या अदा है ये
ज़ोफ़ से रहता है अब पाँव पे सर
न मर के भी तिरी सूरत को देखने दूँगा
हर गाम पे ही साए से इक मिस्रा-ए-मौज़ूँ
नहीं बचता है बीमार-ए-मोहब्बत