ज़ोफ़ से रहता है अब पाँव पे सर
आप-अपनी ठोकरें खाते हैं हम
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ज़ाहिदो क़ुदरत-ए-ख़ुदा देखो
ख़ून मिरा कर के लगाना न हिना मेरे ब'अद
ठुकरा के चले जबीं को मेरी
किस क़दर मुझ को ना-तवानी है
दिमाग़ और ही पाती हैं इन हसीनों में
न मर के भी तिरी सूरत को देखने दूँगा
नक़्श-ए-पा पंच-शाख़ा क़बर पर रौशन करो
हाथ से कुछ न तिरे ऐ मह-ए-कनआँ होगा
दुआएँ माँगीं हैं मुद्दतों तक झुका के सर हाथ उठा उठा कर
क्या हैं शैदा-ए-क़द्द-ए-यार दरख़्त
तकल्लुम जो कोई करता है फ़ानी
भूला है बा'द-ए-मर्ग मुझे दोस्त याँ तलक