नहीं बचता है बीमार-ए-मोहब्बत
सुना है हम ने 'गोया' की ज़बानी
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हसरत ऐ जाँ शब-ए-जुदाई है
ऐ जुनूँ हाथ जो वो ज़ुल्फ़ न आई होती
नासेहा आशिक़ी में रख मा'ज़ूर
ठुकरा के चले जबीं को मेरी
सख़्त है हैरत हमें जो ज़ेर-ए-अबरू ख़ाल है
नज़्ज़ारा-ए-रुख़-ए-साक़ी से मुझ को मस्ती है
ज़ोफ़ से रहता है अब पाँव पे सर
न होगा कोई मुझ सा महव-ए-तसव्वुर
सारे क़ुरआन से उस परी-रू को
किस क़दर मुझ को ना-तवानी है
मिस्ल-ए-तिफ़्लाँ वहशियों से ज़िद है चर्ख़-ए-पीर को
उस को मुझ से रुठा दिया किस ने