सख़्त है हैरत हमें जो ज़ेर-ए-अबरू ख़ाल है
हम तो सुनते थे कि का'बे में कोई हिन्दू नहीं
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Allama Iqbal
Gulzar
Javed Akhtar
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Wasi Shah
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मुँह ढाँप के मैं जो रो रहा हूँ
उल्फ़त ये छुपाएँ हम किसी की
अपना हर उज़्व चश्म-ए-बीना है
दर पे नालाँ जो हूँ तो कहता है
उस को ग़फ़लत-पेशा कह आते हैं हम
मिस्ल-ए-तिफ़्लाँ वहशियों से ज़िद है चर्ख़-ए-पीर को
दुआएँ माँगीं हैं मुद्दतों तक झुका के सर हाथ उठा उठा कर
ज़ोफ़ से रहता है अब पाँव पे सर
बिजली चमकी तो अब्र रोया
सारे क़ुरआन से उस परी-रू को
तकल्लुम जो कोई करता है फ़ानी