सारे क़ुरआन से उस परी-रू को
याद इक लफ़्ज़-ए-लन-तरानी है
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आसमाँ कहते हैं जिस को वो ज़मीन-ए-शेर है
लब-ए-जाँ-बख़्श पे दम अपना फ़ना होता है
मिस्ल-ए-तिफ़्लाँ वहशियों से ज़िद है चर्ख़-ए-पीर को
ये इक तेरा जल्वा सनम चार सू है
उस को मुझ से रुठा दिया किस ने
तुम वफ़ा का एवज़ जफ़ा समझे
ख़ून मिरा कर के लगाना न हिना मेरे ब'अद
ठुकरा के चले जबीं को मेरी
खोल दी है ज़ुल्फ़ किस ने फूल से रुख़्सार पर
हसरत ऐ जाँ शब-ए-जुदाई है
क़त्ल उश्शाक़ किया करते हैं
ऐ जुनूँ हाथ जो वो ज़ुल्फ़ न आई होती