ऐ जुनूँ हाथ जो वो ज़ुल्फ़ न आई होती
आह ने अर्श की ज़ंजीर हिलाई होती
Gulzar
Wasi Shah
Jaun Eliya
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Anwar Masood
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(713) Peoples Rate This
नक़्श-ए-पा पंच-शाख़ा क़बर पर रौशन करो
न मर के भी तिरी सूरत को देखने दूँगा
किस नाज़ से वाह हम को मारा
क़त्ल उश्शाक़ किया करते हैं
गर हमारे क़त्ल के मज़मूँ का वो नामा लिखे
अपने सिवा नहीं है कोई अपना आश्ना
ये इक तेरा जल्वा सनम चार सू है
उस को ग़फ़लत-पेशा कह आते हैं हम
इत्र मिट्टी का लगाया चाहिए पोशाक में
नहीं बचता है बीमार-ए-मोहब्बत
गया है कूचा-ए-काकुल में अब दिल