ग़ज़ल Poetry (page 18)

अपनी ग़ज़ल को ख़ून का सैलाब ले गया

फ़ारूक़ नाज़की

वो चाँद-चेहरा सी एक लड़की

फ़ारूक़ बख़्शी

यारों को क्या ढूँड रहे हो वक़्त की आँख-मिचोली में

फ़ारूक़ अंजुम

मैं मो'तबर हूँ इश्क़ मिरा मो'तबर नहीं

फ़ारूक़ अंजुम

ख़ाली नहीं है कोई यहाँ पर अज़ाब से

फ़ारूक़ अंजुम

यादों का अजीब सिलसिला है

फ़ारिग़ बुख़ारी

रंग-दर-रंग हिजाबात उठाने होंगे

फ़ारिग़ बुख़ारी

ऐ कातिब-ए-तक़दीर ये तक़दीर में लिख दे

फ़रहत नदीम हुमायूँ

तराना-ए-रेख़्ता

फ़रहत एहसास

रात बहुत शराब पी रात बहुत पढ़ी नमाज़

फ़रहत एहसास

पुराना ज़ख़्म जिसे तजरबा ज़ियादा है

फ़रहत एहसास

मैं शहरी हूँ मगर मेरी बयाबानी नहीं जाती

फ़रहत एहसास

ख़ुद से इंकार को हम-ज़ाद किया है मैं ने

फ़रहत एहसास

ख़ूब होनी है अब इस शहर में रुस्वाई मिरी

फ़रहत एहसास

झगड़े ख़ुदा से हो गए अहद-ए-शबाब में

फ़रहत एहसास

एक ग़ज़ल कहते हैं इक कैफ़िय्यत तारी कर लेते हैं

फ़रहत एहसास

आख़िर उस के हुस्न की मुश्किल को हल मैं ने किया

फ़रहत एहसास

उदास शाम में पज़मुर्दा बाद बन के न आ

फ़रहान सालिम

हमा-जिहत मिरी तलब जिस की मिसाल अब नहीं

फ़रीद परबती

जब भी शम-ए-तरब जलाई है

फ़रीद जावेद

कहीं सूरज कहीं ज़र्रा चमकता है

फ़राग़ रोहवी

कहीं सूरज कहीं ज़र्रा चमकता है

फ़राग़ रोहवी

जो भी अंजाम हो आग़ाज़ किए देते हैं

फ़राग़ रोहवी

वो ख़ानुमाँ-ख़राब न क्यूँ दर-ब-दर फिरे

फ़ना निज़ामी कानपुरी

वो जाने कितना सर-ए-बज़्म शर्मसार हुआ

फ़ना निज़ामी कानपुरी

साक़िया तू ने मिरे ज़र्फ़ को समझा क्या है

फ़ना निज़ामी कानपुरी

झूटी ही तसल्ली हो कुछ दिल तो बहल जाए

फ़ना निज़ामी कानपुरी

बहुत सा काम तो पहले ही कर लिया मैं ने

फ़ैज़ान हाशमी

सजाओ बज़्म ग़ज़ल गाओ जाम ताज़ा करो

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

तुम्हारे हुस्न के नाम

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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